Wednesday 17 July 2013

(कन्या भ्रूण-हत्या एक जघन्य अपराध)

(कन्या भ्रूण-हत्या एक जघन्य अपराध)







प्रत्येक शुभ कार्य में हम कन्या पूजन करते हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि उसी कन्या को हम जन्म से पहले ही मारने का पाप क्यों करते हैं? आज समाज के बहुत से लोग शिक्षित होने के बावजूद कन्या भूर्ण हत्या जैसे घृणित कार्य को अंजाम दे रहे हैं। जो आंचल बच्चों को सुरक्षा देता है, वही आंचल कन्याओं की गर्भ में हत्या का पर्याय बन रहा है।हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है।आज भी शहरों के मुकाबले गांव में दकियानूसी विचारधारा वाले लोग बेटों को ही सबसे ज्यादा तव्वजो देते हैं, लेकिन करुणामयी मां का भी यह कर्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की और लड़का में फर्क न करे। दोनों को समान स्नेह और प्यार दे। दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी ले। बालक-बालिका दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ होगा।
                               साइंस व टेक्नॉलोजी ने कन्या-वध की सीमित समस्या को, अल्ट्रासाउंड तकनीक द्वारा भ्रूण-लिंग की जानकारी देकर, समाज में कन्या भ्रूण-हत्या को व्यापक बना दिया है। दुख की बात है कि शिक्षित तथा आर्थिक स्तर पर सुखी-सम्पन्न वर्ग में यह अतिनिन्दनीय काम अपनी जड़ें तेज़ी से फैलाता जा रहा है।1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम नेटल डायग्नोस्टिक एक्ट 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है। इसके बावजूद इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है.अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन या अन्य तकनीक से गर्भधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, करवाना, सहयोग देना, विज्ञापन करना कानूनी अपराध है।
लेकिन यह स्त्री-विरोधी नज़रिया किसी भी रूप में गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है. भेदभाव के पीछे सांस्कृतिक मान्यताओं एवं सामाजिक नियमों का अधिक हाथ होता है. यदि इस प्रथा को बन्द करनी है तो इन नियमों को ही चुनौती देनी होगी.कन्या भ्रूण हत्या में पिता और समाज की भागीदारी से ज्यादा चिंता का विषय है इसमें मां की भी भागीदारी. एक मां जो खुद पहले कभी स्त्री होती है, वह कैसे अपने ही अस्तितव को नष्ट कर सकती है और यह भी तब जब वह जानती हो कि वह लड़की भी उसी का अंश है. औरत ही औरत के ऊपर होने वाले अत्याचार की जड़ होती है यह कथन पूरी तरह से गलत भी नहीं है. घर में सास द्वारा बहू पर अत्याचार, गर्भ में मां द्वारा बेटी की हत्या और ऐसे ही कई चरण हैं जहां महिलाओं की स्थिति ही शक के घेरे में आ जाती है.औरतों पर पारिवारिक दबाव को भी इन्कार नहीं किया जा सकता.

 खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने  दो रे आ ने  दो, उन्हें इस  जीवन  में आने  दो

भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा  जाल बिछाने  दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
                                                                                                               (भाउक जी कुछ पंक्तियाँ)
(आइये एक संकल्प लेते हैं ,कन्या भ्रूण -हत्या एक जघन्य अपराध है ,हम सभी को मिलकर साँझा प्रयत्नों एवं जन जाग्रती द्वारा इस कु -कृत्य को जड़ से उखाड़ने केसमस्त प्रयत्न  करेंगें  !यही समय की मांग है !!)

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 मार्च 2018 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. सुंदर संदेश परक लेख | काश सरकार उन दिनों चेत जाती जब बसों , रेलगाड़ियों और सार्वजनिक स्थलों पर '' बेटा या बेटी '' के पोस्टर बैनर लगे होते थे | उस दौरान न जाने कितनी बेटियों के भ्रूण की हत्या हुई | इसका हिसाब कौन देगा ????????????????

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